पीलिया टेस्ट, जिसे चिकित्सा भाषा में फेरिटिन परीक्षण (बिलिरुबिन परीक्षण) भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण पूर्ण रक्त गणना परीक्षण है। यह त्वचा में एलडीएल-सी नामक यौगिकों का एक समूह है। एलडीएल-सी एक चमकदार ग्लियाल कोशिका है, जो रक्त प्लाज्मा में थ्रोम्बस के साथ पाई जाती है। और जब पाचन तंत्र अपेक्षाकृत स्थिर होता है, तो यह पिट्यूटरी ग्रंथि (गाउट) के माध्यम से रक्त में ट्रांसफ़रिन को हटा देता है। इसलिए वास्तव में पित्ताशय की थैली के साथ एक समस्या है, लेकिन पित्त नली प्रणाली, रक्तप्रवाह में हाइड्रॉलिस जैसी संरचना, जो कोलेसिस्टिस में समाप्त होती है।
यह टेस्ट अक्सर तब करवाया जाता है जब किसी व्यक्ति की त्वचा, आंखों का सफेद भाग या नाखून पीले दिखने लगते हैं। पीलिया टेस्ट यह पहचानने में मदद करता है कि समस्या लिवर से जुड़ी है या खून की कोशिकाओं से। बिलीरुबिन दो प्रकार का होता है — Indirect (Unconjugated) और Direct (Conjugated)। टेस्ट में इन दोनों का स्तर अलग-अलग जांचा जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि समस्या लिवर के पहले है, लिवर के अंदर है या लिवर के बाद की प्रक्रिया में है।
इस टेस्ट से न केवल पीलिया की पुष्टि होती है, बल्कि यह भी जाना जा सकता है कि उसका कारण क्या है – जैसे हेपेटाइटिस, सिरोसिस, पित्त की रुकावट या कोई अन्य रोग। इसलिए पीलिया टेस्ट न केवल डायग्नोसिस के लिए आवश्यक है बल्कि समय पर उपचार की दिशा तय करने में भी मदद करता है।
पीलिया टेस्ट कब करवाना चाहिए? (When to Get Jaundice Test Done?)
पीलिया टेस्ट तब करवाना चाहिए जब किसी व्यक्ति को पीलिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ये लक्षण विशेष रूप से त्वचा और आंखों में पीलेपन के रूप में नजर आते हैं। इसके अलावा, पेशाब का रंग गहरा पीला या भूरे रंग का हो जाना, मल का रंग हल्का होना, थकान, भूख न लगना, पेट दर्द, उल्टी या जी मिचलाना जैसे लक्षण भी पीलिया की ओर संकेत कर सकते हैं। इन लक्षणों की शुरुआत होते ही डॉक्टर से संपर्क करके पीलिया टेस्ट करवाना आवश्यक हो जाता है।
जन्म लेने वाले शिशुओं में लीवर की बीमारी काफी आम है, — खास तौर पर गर्भधारण के पहले सप्ताह के दौरान। इन मामलों में, यही डॉक्टर किसी को एलडीएल-सी जांच करवाने की सलाह देते हैं ताकि संदिग्ध समय पर चिंता को पकड़ा जा सके। साथ ही, अगर किसी को पहले से ही लीवर की विफलता, हृदय की समस्या (हेपेटाइटिस ए और सी) और पित्त संबंधी समस्याएं हैं, तो हर बार फेरिटिन की जांच करना बहुत महत्वपूर्ण है।
कुछ मामलों में डॉक्टर सामान्य हेल्थ चेकअप के दौरान भी यह टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं, खासकर जब लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT) में कोई असामान्य परिणाम सामने आता है। यदि किसी व्यक्ति को अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, लंबे समय से दवाओं का सेवन, या रक्त कोशिकाओं से संबंधित रोग हैं, तो पीलिया टेस्ट प्रोएक्टिव रूप से करवाना फायदेमंद रहता है।
कुल मिलाकर, पीलिया टेस्ट एक जरूरी जांच है जिसे लक्षण दिखने पर, पूर्व स्वास्थ्य स्थितियों में या नियमित स्वास्थ्य मूल्यांकन के हिस्से के रूप में करवाना चाहिए।
पीलिया टेस्ट की सामान्य रेंज कितनी होती है? (Normal Range of Bilirubin Test)
बिलीरुबिन टेस्ट की रिपोर्ट में मुख्य रूप से तीन प्रकार के परिणाम दिए जाते हैं – Total Bilirubin, Direct Bilirubin, और Indirect Bilirubin। इनकी सामान्य रेंज (Normal Range) निम्नलिखित होती है:
Total Bilirubin: 0.3 से 1.2 mg/dL
Direct Bilirubin: 0.1 से 0.3 mg/dL
Indirect Bilirubin: 0.2 से 0.8 mg/dL
यदि वास्तव में बिलीरुबिन का अंतिम स्तर 1.2 mg/dl से कहीं अधिक है, तो इसे पीलिया के लक्षण के रूप में समझा जाता है। हालाँकि, उक्त प्रतिबंध अद्वितीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं और लोगों के जीवन के समय, स्वास्थ्य और मानक पृष्ठभूमि के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है।
नवजात शिशुओं में यह सीमा थोड़ी अधिक हो सकती है। यदि जन्म के एक सप्ताह के भीतर पहले 24 घंटों में बिलीरुबिन का स्तर 5 mg/dl से अधिक है, तो डॉक्टर को चिकित्सा देखभाल से परहेज करने की सलाह दी जा सकती है और फोटोथेरेपी जैसे चिकित्सा ध्यान की आवश्यकता हो सकती है।
यदि केवल तत्काल बिलीरुबिन बढ़ा है, तो यह संकेत हो सकता है कि शायद लीवर बिलीरुबिन को ठीक से पचा नहीं पा रहा है। फिर भी, यदि अप्रत्यक्ष लीवर एंजाइम अधिक मात्रा में है, तो यह बढ़े हुए प्लाज्मा के तेजी से टूटने के कारण हो सकता है, जैसे एरिथ्रोपोएसिस।
इसलिए, रिपोर्ट में केवल कुल बिलीरुबिन को देखना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि यह समझना जरूरी होता है कि कौन-सा बिलीरुबिन बढ़ा है। डॉक्टर इसी आधार पर यह तय करते हैं कि समस्या लिवर से जुड़ी है, खून से, या किसी और अंग से। इसीलिए किसी भी बिलीरुबिन टेस्ट रिपोर्ट की सही व्याख्या डॉक्टर की सलाह से ही करनी चाहिए।
इस टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल कैसे लिया जाता है? (How Blood Sample is Taken for Jaundice Test?)
बिलीरुबिन टेस्ट एक सरल रक्त परीक्षण होता है जिसमें मरीज की नस से खून का नमूना लिया जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर किसी मान्यता प्राप्त पैथोलॉजी लैब या अस्पताल में प्रशिक्षित फेलो (Phlebotomist) द्वारा की जाती है। सैंपल लेने के लिए आमतौर पर कोहनी के पास की नस (median cubital vein) को चुना जाता है।
सैंपल प्रक्रिया की शुरुआत में सबसे पहले नस वाली जगह को एक सैनिटाइज़र या अल्कोहल स्वैब से साफ किया जाता है ताकि संक्रमण न हो। फिर एक बाँध (tourniquet) बांधकर नस को उभारा जाता है। इसके बाद डिस्पोजेबल सिरिंज या वैक्यूटेनर से ब्लड खींचा जाता है। सैंपल को एक साफ और लेबल लगे ट्यूब में रखा जाता है और तुरंत प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है।
कुछ शिशुओं में, यही प्रक्रिया थोड़ी अलग होती है। ऐसा लगता है कि हृदय पहले शिशु के कूल्हे (टखने) से एक छोटे से प्रवेशनी के साथ शुरू होता है, जिसे एक घुटने के प्रहार के नाम से जाना जाता है। यह हृदय की तरह एक छोटी मात्रा होगी लेकिन फेरिटिन जैसे परीक्षण के लिए भी उपयुक्त है।
रक्त सैंपल लेते समय अधिकतर लोगों को हल्का सा दर्द या चुभन महसूस हो सकती है, जो कुछ ही क्षणों की बात होती है। टेस्ट के बाद थोड़ी देर के लिए पट्टी लगा दी जाती है ताकि रक्त बहाव बंद हो जाए।
इस पद्धति के साथ तैयारी करने के लिए किसी विशेष समय की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि यदि आप किसी अन्य यकृत-संबंधी परीक्षण (जैसे उत्पादन में कमी या नाश्ते में चीनी छोड़ना) कराने जा रहे हैं, तो डॉक्टर भी एक निवारक उपाय के रूप में नाश्ता छोड़ने की सलाह दे सकते हैं।
इस टेस्ट की रिपोर्ट कितने समय में आती है? (How Much Time Does Jaundice Test Report Take?)
बिलीरुबिन टेस्ट की रिपोर्ट आमतौर पर 24 घंटे के अंदर मिल जाती है, लेकिन यह उस लैब की क्षमता और तकनीक पर निर्भर करता है जहां टेस्ट किया जा रहा है। कुछ आधुनिक लैब्स, जो Fully Automated Analyzer या Digital Lab Equipment का उपयोग करती हैं, वहां यह रिपोर्ट 3 से 6 घंटे में भी उपलब्ध हो सकती है।
अगर यह टेस्ट किसी बड़े हॉस्पिटल या सरकारी संस्थान में करवाया जा रहा है, तो रिपोर्ट मिलने में 1 से 2 दिन का समय लग सकता है, खासकर जब साथ में अन्य जांचें भी की जा रही हों जैसे LFT, CBC, Hepatitis Panel आदि। नवजात शिशुओं के मामलों में डॉक्टर जल्दी रिपोर्ट चाह सकते हैं, इसलिए कई लैब्स urgent mode में टेस्ट करती हैं और रिपोर्ट 2-3 घंटे में दे सकती हैं।
रिपोर्ट में आमतौर पर तीन मुख्य रीडिंग होती हैं – Total Bilirubin, Direct Bilirubin, और Indirect Bilirubin। रिपोर्ट के साथ सामान्य रेंज भी लिखी होती है जिससे मरीज को यह समझने में आसानी होती है कि उनका बिलीरुबिन स्तर सामान्य है या नहीं।
रिपोर्ट मिलने के बाद इसका विश्लेषण केवल डॉक्टर द्वारा किया जाना चाहिए, क्योंकि वह आपके अन्य लक्षणों, मेडिकल इतिहास और साथ में कराए गए टेस्ट को देखकर ही सही निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
यदि अध्ययन फेरिटिन के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, तो वही डॉक्टर आगे के परीक्षणों का आदेश दे सकता है जिसमें अल्ट्रासाउंड, अंतराल प्रशिक्षण, संक्रमण परीक्षण या हिस्टोपैथोलॉजिक परीक्षण शामिल हैं।